menu

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

शनिवार, 14 जून 2014

dohanjali: sanjiv

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म  
*
गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य 
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य 
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान 
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान 
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल 
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल 
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप 
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप 
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप 
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात 
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह 
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह 
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र 
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार 
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार 
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह 
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह 
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास 
*   

बुधवार, 11 जून 2014

chhand salila: vidhata chhand -sanjiv

छंद सलिला:
विधाता/शुद्धगाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति यौगिक, प्रति पद २८ मात्रा, 
                   यति ७-७-७-७ / १४-१४ , ८ वीं - १५ वीं मात्रा लघु 
विशेष: उर्दू बहर हज़ज सालिम 'मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन' इसी छंद पर आधारित है. 

लक्षण छंद:

    विधाता को / नमन कर ले , प्रयासों को / गगन कर ले 
    रंग नभ पर / सिंधु में जल , साज पर सुर / अचल कर ले 
    सिद्धि-तिथि लघु / नहीं कोई , दिखा कंकर / मिला शंकर  
    न रुक, चल गिर / न डर, उठ बढ़ , सीकरों को / सलिल कर ले        
    संकेत: रंग =७, सिंधु = ७, सुर/स्वर = ७, अचल/पर्वत = ७ 
               सिद्धि = ८, तिथि = १५ 
उदाहरण:

१.  न बोलें हम न बोलो तुम , सुनें कैसे बात मन की?       
    न तोलें हम न तोलो तुम , गुनें कैसे जात तन की ?  
    न डोलें हम न डोलो तुम , मिलें कैसे श्वास-वन में?   
    न घोलें हम न घोलो तुम, जियें कैसे प्रेम धुन में? 
     जात = असलियत, पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात 

२. ज़माने की निगाहों से , न कोई बच सका अब तक
   निगाहों ने कहा अपना , दिखा सपना लिया ठग तक     
   गिले - शिकवे करें किससे? , कहें किसको पराया हम?         
   न कोई है यहाँ अपना , रहें जिससे नुमायाँ हम  

३. है हक़ीक़त कुछ न अपना , खुदा की है ज़िंदगानी          
    बुन रहा तू हसीं सपना , बुजुर्गों की निगहबानी
    सीखता जब तक न तपना , सफलता क्यों हाथ आनी?  
    कोशिशों में खपा खुदको , तब बने तेरी कहानी

४. जिएंगे हम, मरेंगे हम, नहीं है गम, न सोचो तुम 
    जलेंगे हम, बुझेंगे हम, नहीं है तम, न सोचो तुम 
    कहीं हैं हम, कहीं हो तुम, कहीं हैं गम, न सोचो तुम 
    यहीं हैं हम, यहीं हो तुम, नहीं हमदम, न सोचो तुम 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila;

छंद सलिला:
विष्णुपदRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत गुरु 

लक्षण छंद:

    सोलह गुण आगार विष्णुपद , दस दिश बसें रमा
    अवढरदानी प्रभु प्रसन्न हों , दें आशीष उमा 
    गुरु पदांत शोभित हो गुरुवत , सुमधुर बंद रचें 
    भाव बिम्ब लय अलंकार रस , सस्वर छंद नचें       
    
उदाहरण:

१. भारत माता की जय बोलो , ध्वज रखो ऊँचा
   कोई काम न ऐसा करना , शीश झुके नीचा    
   जगवाणी हिंदी की जय हो , सुरवाणी बोलो        
   हर भाषा है शारद मैया , कह मिसरी घोलो 

२. सारी दुनिया है कुटुंबवत , दूर करो दूरी            
    भाषा-भूषा धर्म-क्षेत्र की , क्यों हो मजबूरी?
    दिल का दिल से नेता जोड़ो , भाईचारा हो 
    सांझी थाती रहे विरासत , क्यों बँटवारा हो?     

३. जो हिंसा फैलाते उनको , भारी दंड मिलें        
    नारी-गौरव के अपराधी , जीवित नहीं बचें 
    ममता समता सदाचार के , पग-पग कमल खिलें   
    रिश्वत लालच मोह लोभ अब, किंचित नहीं पचें 
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

मंगलवार, 10 जून 2014

chhand salila: anugeet chhand -sanjiv

छंद सलिला:
अनुगीतRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति१६-१०, पदांत लघु 

लक्षण छंद:

    अनुगीत सोलह-दस कलाएँ , अंत लघु स्वीकार
    बिम्ब रस लय भाव गति-यतिमय , नित रचें साभार     
    
उदाहरण:

१. आओ! मैं-तुम नीर-क्षीरवत , एक बनें मिलकर
   देश-राह से शूल हटाकर , फूल रखें चुनकर     
   आतंकी दुश्मन भारत के , जा न सकें बचकर      
   गढ़ पायें समरस समाज हम , रीति नयी रचकर    

२. धर्म-अधर्म जान लें पहलें , कर्तव्य करें तब            
    वर्तमान को हँस स्वीकारें , ध्यान धरें कल कल
    किलकिल की धारा मोड़ें हम , धार बहे कलकल 
    कलरव गूँजे दसों दिशा में , हरा रहे जंगल    

३. यातायात देखकर चलिए , हो न कहीं टक्कर          
    जान बचायें औरों की , खुद आप रहें बचकर  
    दुर्घटना त्रासद होती है , सहें धीर धरकर  
    पीर-दर्द-दुःख मुक्त रहें सब , जीवन हो सुखकर
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

सोमवार, 9 जून 2014

chhand salila: kamroop chhand -sanjiv

छंद सलिला:
कामरूपRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण: जाति महाभागवत, प्रति पद मात्रा २६, यति ९-७-१०, पदांत गुरु लघु 

लक्षण छंद:

    कामरूप छंद , दे आनंद , सँग खुशियां अनंत
    मुँहदेखा नहीं , सच हमेशा , खरा कहे ज्यों संत   
    नौ निधि सात सुर , दस दिशाएँ , करें सुकीर्ति गान 
    अंत में अंतर , भुला लघु-गुरु , लगे सदा समान    
      
उदाहरण:

१. गले लग जाओ , प्रिये! आओ , करो पूरी चाह
   गीत मिल गाओ , प्रिये! आओ , मिटे सारी दाह  
   दूरियाँ कम कर , मुस्कुराओ , छिप भरो मत आह    
   मन मिले मन से , खिलखिलाओ , करें मिलकर वाह  

२. चलें विद्यालय , पढ़ें-लिख-सुन , गुनें रहकर साथ          
    करें जुटकर श्रम , रखें ऊँचा , हमेशा निज माथ
    रोप पौधे कुछ , सींच हर दिन , दें धरा को हास
    प्रदूषण हो कम , हँसे जीवन / कर सदैव प्रयास 

३. ईमान की हो , फिर प्रतिष्ठा , प्रयासों की जीत
    दुश्मनों की हो , पराजय ही / विजय पायें मीत
    आतंक हो अब , खत्म नारी , पा सके सम्मान
    मुनाफाखोरी ,  न रिश्वत हो , जी सके इंसान

४. है क्षितिज के उस ओर भी , सम्भावना-विस्तार
    है ह्रदय के इस ओर भी , मृदु प्यार लिये बहार
    है मलयजी मलय में भी , बारूद की दुर्गंध
    है प्रलय की पदचाप सी , उठ रोक- बाँट सुगंध   
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: jhulna chhand -sanjiv

छंद सलिला:
झूलनाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महाभागवत, प्रति पद २६ मात्रा, 
                   यति ७-७-७-५, पदांत गुरु लघु 

लक्षण छंद:

    हरि! झूलना , मत भूलना , राधा कहें , हँस झूम
    घन श्याम को , झट दामिनी , ने लिया कर , भर चूम    
    वेणु सुर ऋषि , वचन सुनने , लास-रास क/रें मौन 
    कौन किसका , कब हुआ है? , बोल सकता / रे! कौन?   
      
उदाहरण:

१. मैं-तुम मिले , खो, गुम हुए , फिर हम बने , इकजान
   पद-पथ मिले , मंज़िल हुए , हमदम हुए , अनजान   
   गेसू खुले , टेसू खिले , सपने हुए , साकार     
   पलकें खुलीं , अँखियाँ मिलीं , अपने हुए , दिलदार   

२. पथ पर चलें , गिर-उठ बढ़ें , नभ को छुएँ , मिल साथ           
    प्रभु! प्रार्थना , आशीष दें , ऊँचा उठा , हो माथ
    खुद से न आँ/खें चुराने , की घड़ी आ/ये तात!
    हौसलों की , फैसलों से , मत हो सके , रे मात   

३. देश-गौरव , से नहीं है , अधिक गौरव , सच मान        
    देश हित मर-मर अमर हों , नित्य शहीद, हठ ठान 
    है भला या , है बुरा- है , देश अपना , मजबूत 
    संभावना , सच करेंगे , संकल्प है , शुभ-पूत
                         *********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)