menu

Drop Down MenusCSS Drop Down MenuPure CSS Dropdown Menu

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

shri chitraguptaji:

चित्रगुप्त  निरूपण:

संजीव  

'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.

गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'

 - डॉ. प्रतिभा सक्सेना 

आचार्य जी,

'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !

उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -

कायस्थ

कोई पूछता है मेरी जाति 

मुझे हँसी आती है 

मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ ! 

न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र , 

कोई जाति नहीं मेरी, 

लोगों ने जो बना रखी हैं ! 

मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से, 

न हाथ से, न पेट से, न पैर से, 

किसी अकेले अंग से नहीं ! 

उस चिद्आत्म के पूरे तन 

और भावन से प्रकटित स्वरूप- मैं, 

सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध! 

सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!

मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से, 

ढाल लेता हूँ स्वयं को

समय के अनुरूप ! 

पढ़ता-लिखता,

सोच-विचार कर 

लेखा-जोखा करता हूँ 

इस दुनिया का !

रचा तुमने, 

चेतना का एक चित्र 

जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में, 

ढाल दिया उसे काया में! 

कायस्थ हूँ मैं! 

प्रभु!अच्छा किया तुमने, 

कि कोई जाति न दे 

मुझे कायस्थ बनाया ! 

pratibha_saksena@yahoo.com
---------------
--अम्बरीष श्रीवास्तव 
 आदरणीय आचार्य जी ,
महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ |

कायस्थ
मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज |
सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज ||


मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत |
वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र ||


धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि |
संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन |


ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश |
ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश ||

काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण |
व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण ||


चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम |
ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम ||


ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात | 
ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात ||


प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार |
पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार ||


सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान |
सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान ||

दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश |
एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास ||


कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ |
सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त ||
सादर,
ambarishji@gmail.com --अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)
91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020

कोई टिप्पणी नहीं: