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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

doha dev vandana

दोहा:
संजीव
*
निराकार पर ब्रम्ह हे!, चित्रगुप्त भगवान
हर काया में समाया, प्रभु का अंश समान
.
चित्रगुप्त परब्रम्ह हे!, रहिए सदय सदैव
ध्यान तुम्हारा कर सकूँ, तहकर सभी कुटैव
.
माता नन्दिनी-दक्षिणा, हमको दें आशीष
निभा सकें कर्तव्य निज, हम हो सकें मनीष
.
काया हैं प्रभु आप ही, माया हैं प्रभु आप
मन मंदिर होगा करें, नित्य तुम्हारा जाप
.
कंकर कंकर में  छिपा, गुप्त चित्र लें देख
ऐसी कब होगी 'सलिल', कर्मों की शुभ रेख
*     

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