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बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नवगीत
नव वर्ष पर नवगीत

संजीव 'सलिल'

*

महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*

काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....

*

खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*
तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*
स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*

ली हाथ

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा...

**********************http://divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

'बड़ा दिन' -संजीव 'सलिल'

गीत:

'बड़ा दिन'


संजीव 'सलिल'


हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.

बनें सहायक नित्य किसी के-

पूरा करदें उसका सपना.....
*
केवल खुद के लिए न जीकर

कुछ पल औरों के हित जी लें.

कुछ अमृत दे बाँट, और खुद

कभी हलाहल थोडा पी लें.

बिना हलाहल पान किये, क्या

कोई शिवशंकर हो सकता?

बिना बहाए स्वेद धरा पर

क्या कोई फसलें बो सकता?

दिनकर को सब पूज रहे पर

किसने चाहा जलना-तपना?

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
निज निष्ठा की सूली पर चढ़,

जो कुरीत से लड़े निरंतर,

तन पर कीलें ठुकवा ले पर-

न हो असत के सम्मुख नत-शिर.

करे क्षमा जो प्रतिघातों को

रख सद्भाव सदा निज मन में.

बिना स्वार्थ उपहार बाँटता-

फिरे नगर में, डगर- विजन में.

उस ईसा की, उस संता की-

'सलिल' सीख ले माला जपना.

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*
जब दाना चक्की में पिसता,

आटा बनता, क्षुधा मिटाता.

चक्की चले समय की प्रति पल

नादां पिसने से घबराता.

स्नेह-साधना कर निज प्रतिभा-

सूरज से कर जग उजियारा.

देश, धर्म, या जाति भूलकर

चमक गगन में बन ध्रुवतारा.

रख ऐसा आचरण बने जो,

सारी मानवता का नपना.

हम ऐसा कुछ काम कर सकें

हर दिन रहे बड़ा दिन अपना.....
*

(भारत में क्रिसमस को 'बड़ा दिन' कहा जाता है.)

http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

स्मृति दीर्घा: संजीव 'सलिल'

गीत
स्मृति दीर्घा:
संजीव 'सलिल'
*
स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...
*
पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन.
मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन..
चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग...
*
ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.
शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.
पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...
*
टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.
जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.
उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...
*
मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.
कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.
मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...
*
बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम.
मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम.
दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग...
*
ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य.
मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य.
'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग...
*
स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल.
यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ शूल.
लेकर आया नया साल, मिल इसे लगायें भोग...
***********

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

दोहा गीतिका 'सलिल'

(अभिनव प्रयोग)

दोहा मुक्तिका

संजीव
*
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।

फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।
प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।

हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।

हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।

*********************************

तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत = लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती = देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर = प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज, तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कायस्थ - प्रतिभा.

pratibha_saksena@yahoo.com

'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.
गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'

आचार्य जी,

'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !

उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -

कायस्थ.

कोई पूछता है मेरी जाति ,
मुझे हँसी आती है ,
मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ !
न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र ,
कोई जाति नहीं मेरी,
लोगों ने जो बना रखी हैं !
मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से,
न हाथ से, न पेट से, न पैर से,
किसी अकेले अंग से नहीं !
उस चिद्आत्म के पूरे तन
और भावन से प्रकटित
स्वरूप- मैं,
सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध!
सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!
मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से,
ढाल लेता हूँ स्वयं को
समय के अनुरूप !
पढ़ता-लिखता,
सोच-विचार कर
लेखा-जोखा करता हूँ
इस दुनिया का !
रचा तुमने,
चेतना का एक चित्र
जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में,
ढाल दिया उसे काया में!
कायस्थ हूँ मैं!
प्रभु!अच्छा किया तुमने,
कि कोई जाति न दे
मुझे कायस्थ बनाया !
- प्रतिभा सक्सेना

ambarishji@gmail.com की छवियां हमेशा प्रदर्शित करें

आदरणीय आचार्य जी ,
महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ |

कायस्थ

मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज |
सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज ||

मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत |
वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र ||

धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि |
संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन |

ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश |
ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश ||

काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण |
व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण ||

चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम |
ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम ||

ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात |
ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात ||

प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार |
पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार ||

सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान |
सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान ||

दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश |
एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास ||

कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ |
सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त ||

सादर,
--अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)
91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

नव गीत: अवध तन,/मन राम हो... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

संजीव 'सलिल'

अवध तन,
मन राम हो...
*
आस्था सीता का
संशय का दशानन.
हरण करता है
न तुम चुपचाप हो.
बावरी मस्जिद
सुनहरा मृग-छलावा.
मिटाना इसको कहो
क्यों पाप हो?

उचित छल को जीत
छल से मौन रहना.
उचित करना काम
पर निष्काम हो.
अवध तन,
मन राम हो...
*
दगा के बदले
दगा ने दगा पाई.
बुराई से निबटती
यूँ ही बुराई.
चाहते हो तुम
मगर संभव न ऐसा-
बुराई के हाथ
पिटती हो बुराई.

जब दिखे अंधेर
तब मत देर करना
ढेर करना अनय
कुछ अंजाम हो.
अवध तन,
मन राम हो...
*
किया तुमने वह
लगा जो उचित तुमको.
ढहाया ढाँचा
मिटाया क्रूर भ्रम को.
आज फिर संकोच क्यों?
निर्द्वंद बोलो-
सफल कोशिश करी
हरने दीर्घ तम को.

सजा या ईनाम का
भय-लोभ क्यों हो?
फ़िक्र क्यों अनुकूल कुछ
या वाम हो?
अवध तन,
मन राम हो...
*

शनिवार, 14 नवंबर 2009

नव गीत : संजीव 'सलिल'

नव गीत :

संजीव 'सलिल'
*
चलो भूत से
मिलकर आएँ...
*
कल से कल के
बीच आज है.
शीश चढा, पग
गिरा ताज है.
कल का गढ़
है आज खंडहर.
जड़ जीवन ज्यों
भूतों का घर.
हो चेतन
घुँघरू खनकाएँ.
चलो भूत से
मिलकर आएँ...
*
जनगण-हित से
बड़ा अहम् था.
पल में माटी
हुआ वहम था.
रहे न राजा,
नौकर-चाकर.
शेष न जादू
या जादूगर.
पत्थर छप रह
कथा सुनाएँ.
चलो भूत से
मिलकर आएँ...
*
जन-रंजन
जब साध्य नहीं था.
तन-रंजन
आराध्य यहीं था.
शासक-शासित में
यदि अंतर.
काल नाश का
पढता मंतर.
सबक भूत का
हम पढ़ पाएँ.
चलो भूत से
मिलकर आएँ...
*

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

स्मृति गीत: संजीव 'सलिल'

स्मृति गीत:
*
संजीव 'सलिल'

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

अलस सवेरे

उठते ही तुम,

बिन आलस्य

काम में जुटतीं.

सिगडी, सनसी,

चिमटा, चमचा

चौके में

वाद्यों सी बजतीं.

देर हुई तो

हमें जगाने

टेर-टेर

आवाज़ लगाई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

जेल निरीक्षण

कर आते थे,

नित सूरज

उगने के पहले.

तव पाबंदी,

श्रम, कर्मठता

से अपराधी

रहते दहले.

निज निर्मित

व्यक्तित्व, सफलता

पाकर तुमने

सहज पचाई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

माँ!-पापा!

संकट के संबल

गए छोड़कर

हमें अकेला.

विधि-विधान ने

हाय! रख दिया

है झिंझोड़कर

विकट झमेला.

तुम बिन

हर त्यौहार अधूरा,

खुशी पराई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

यह सूनापन

भी हमको

जीना ही होगा

गए मुसाफिर.

अमिय-गरल

समभावी हो

पीना ही होगा

कल की खातिर.

अब न

शीश पर छाँव,

धूप-बरखा मंडराई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

वे क्षर थे,

पर अक्षर मूल्यों

को जीते थे.

हमने देखा.

कभी न पाया

ह्रदय-हाथ

पल भर रीते थे

युग ने लेखा.

सुधियों का

संबल दे

प्रति पल राह दिखाई..

सृजन विरासत

तुमसे पाई...


*

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

दिवाली गीत: आओ! दीपावली मनायें... आचार्य संजीव 'सलिल'

दिवाली गीत:

आओ! दीपावली मनायें...

आचार्य संजीव 'सलिल'

*

साफ़ करें कमरा, घर, आँगन.
गली-मोहल्ला हो मन भावन.
दूर करें मिल कचरा सारा.
हो न प्रदूषण फिर दोबारा.
पन्नी-कागज़ ना फैलायें.
व्यर्थ न ज्यादा शोर मचायें.
करें त्याग रोकेट औ' बम का.
सब सामान साफ़ चमकायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*

नियमित काटें केश और नख.
सबल बनें तन सदा साफ़ रख.
नित्य नहायें कर व्यायाम.
देव-बड़ों को करें प्रणाम.
शुभ कार्यों का श्री गणेश हो.
निबल-सहायक प्रिय विशेष हो.
परोपकार सम धर्म न दूजा.
पढ़े पुस्तकें, ज्ञान बढायें
आओ! दीपावली मनायें...
*

धन तेरस पर सद्गुण का धन.
संचित करें, रहें ना निर्धन.
रूप चतुर्दशी कहे: 'सँवारो
तन-मन-दुनिया नित्य निखारो..
श्री गणेश-लक्ष्मी का पूजन.
करो- ज्ञान से ही मिलता धन.
गोवर्धन पूजन का आशय.
पशु-पक्षी-प्रकृति हो निर्भय.
भाई दूज पर नेह बढायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

लघु कथा: समय का फेर - आचार्य संजीव 'सलिल'

लघु कथा
समय का फेर
संजीव
*
गुरु जी शिष्य को पढ़ना-लिखना सिखाते परेशां हो गए तो खीझकर मारते हुए बोले- ' तेरी तकदीर में तालीम है घ नहीं तो क्या करुँ? तू मेरा और अपना दोनों का समय बरबाद कार रहा है. जा भाग जा, इतने समय में कुछ और सीखेगा तो कमा खायेगा.
गुरु जी नाराज तो रोज ही होते थे लेकिन उस दिन चेले के मन को चोट लग गयी. उसने विद्यालय आना बंद कर दिया, सोचा 'आज भगा रहे हैं. ठीक है भगा दीजिये, लेकिन मैं एक दिन फ़िर आऊंगा... जरूर आऊंगा.
गुरु जी कुछ दिन दुखी रहे कि व्यर्थ ही नाराज हुए, न होते तो वह आता ही रहता और कुछ न कुछ सीखता भी. धीरे-धीरे. गुरु जी वह घटना भूल गए.
कुछ साल बाद गुरूजी एक अवसर पर विद्यालय में पधारे अतिथि का स्वागत कर रहे थे. तभी अतिथि ने पूछा- 'आपने पहचाना मुझे?
गुरु जी ने दिमाग पर जोर डाला तो चेहरा और घटना दोनों याद आ गयी किंतु कुछ न कहकर चुप ही रहे.
गुरु जी को चुप देखकर अतिथि ही बोला- 'आपने ठीक पहचाना. मैं वही हूँ. सच ही मेरे भाग्य में विद्या पाना नहीं है, आपने ठीक कहा था किंतु विद्या देनेवालों का भाग्य बनाना मेरे भाग्य में है यह आपने नहीं बताया था.
गुरु जी अवाक् होकर देख रहे थे समय का फेर.
*****

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

शोक गीत

स्मृति गीत / शोक गीत-

पितृव्य हमारे
नहीं रहे....

आचार्य संजीव 'सलिल'

*

वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
पूर्वजन्म के
पुण्य फलित
वे,
अनुशासन
मन भाया थे.
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है
भवितव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....

*

वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....

*

वे
शिव-स्तुति
का उच्चारण.
वे राम-नाम
भव-भय तारण.
वे शांति-पति
वे कर्मव्रती.
वे
शुभ मूल्यों के
पारायण.
परसेवा के
अपनेपन के
मंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....

*

रविवार, 20 सितंबर 2009

कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मेलन भिलाई

******************************
समाचार
कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मेलन भिलाई गतिविधि

13दिसम्बर2009

आयोजक

चित्रांश चर्चा मासिक एवं चित्रांश चेतना मंच

पंजीयन शुल्क रु. 151/-

अन्य विवरण के लिए संपर्क

दूरभाष: श्री देवेन्द्र नाथ - 0788-2290864

श्री अरुण श्रीवास्तव 'विनीत'09425201251

****************************************

सोमवार, 14 सितंबर 2009

नवगीत: संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

अपना हर पल
है हिन्दीमय
एक दिवस
क्या खाक मनाएँ?

बोलें-लिखें
नित्य अंग्रेजी
जो वे
एक दिवस जय गाएँ...

निज भाषा को
कहते पिछडी.
पर भाषा
उन्नत बतलाते.

घरवाली से
आँख फेरकर
देख पडोसन को
ललचाते.

ऐसों की
जमात में बोलो,
हम कैसे
शामिल हो जाएँ?...

हिंदी है
दासों की बोली,
अंग्रेजी शासक
की भाषा.

जिसकी ऐसी
गलत सोच है,
उससे क्या
पालें हम आशा?

इन जयचंदों
की खातिर
हिंदीसुत
पृथ्वीराज बन जाएँ...

ध्वनिविज्ञान-
नियम हिंदी के
शब्द-शब्द में
माने जाते.

कुछ लिख,
कुछ का कुछ पढने की
रीत न हम
हिंदी में पाते.

वैज्ञानिक लिपि,
उच्चारण भी
शब्द-अर्थ में
साम्य बताएँ...

अलंकार,
रस, छंद बिम्ब,
शक्तियाँ शब्द की
बिम्ब अनूठे.

नहीं किसी
भाषा में मिलते,
दावे करलें
चाहे झूठे.

देश-विदेशों में
हिन्दीभाषी
दिन-प्रतिदिन
बढ़ते जाएँ...

अन्तरिक्ष में
संप्रेषण की
भाषा हिंदी
सबसे उत्तम.

सूक्ष्म और
विस्तृत वर्णन में
हिंदी है
सर्वाधिक
सक्षम.

हिंदी भावी
जग-वाणी है
निज आत्मा में
'सलिल' बसाएँ...

********************
-दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

निर्बलता दूर करने के उपाय : डॉ. कृष्णमोहन निगम, जबलपुर

निर्बलता दूर करने के उपाय :
डॉ. कृष्णमोहन निगम, जबलपुर
*
-- बिदारीकंद को पीस-छान कर समान भर खांड (शक्कर) मिलाकर रख लें. एक-एक चम्मच गौ-दुग्ध के साथ सेवन करने से निर्बलता दूर होगी.

-- दो-दो अंजीर सुबह-शाम गौ-दुग्ध में औंटाकर सेवन करें तो यौन निर्बलता घटेगी.

-- पाँच मुनक्के गौ-दुग्ध में पकाकर सुबह-शाम सेवन करने स एशारिरिक निर्बलता दूर होगी.

-- पुनर्नवा कि जड़ तथा छाल को मिलाकर प्रातःकाल निहारे पेट दुग्ध के साथ सेवन करें तो शारीरिक निर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति बढेगी.

रविवार, 23 अगस्त 2009

भजन: भोले घर बजे बधाई -स्व. शान्ति देवी वर्मा

भोले घर बाजे बधाई

स्व. शांति देवी वर्मा

मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ...


गौर मैया ने लालन जनमे,
गणपति नाम धराई.
भोले घर बाजे बधाई ...

द्वारे बन्दनवार सजे हैं,
कदली खम्ब लगाई.
भोले घर बाजे बधाई ...

हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें,
मोतियन चौक पुराई.
भोले घर बाजे बधाई ...

स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं,
चौमुख दिया जलाई.
भोले घर बाजे बधाई ...

लक्ष्मी जी पालना झुलावें,
झूलें गणेश सुखदायी.
भोले घर बाजे बधाई ...

******************

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

रक्षा बंधन के दोहे: आचार्य सन्जीव 'सलिल'

रक्षा बंधन के दोहे:
संजीव

चित-पट दो पर एक है,दोनों का अस्तित्व.

भाई-बहिन अद्वैत का, लिए द्वैत में तत्व..

***

दो तन पर मन एक हैं, सुख-दुःख भी हैं एक.

यह फिसले तो वह 'सलिल', सार्थक हो बन टेक..

***

यह सलिला है वह सलिल, नेह नर्मदा धार.

इसकी नौका पार हो, पा उसकी पतवार..

***

यह उसकी रक्षा करे, वह इस पर दे जान.

'सलिल' स्नेह' को स्नेह दे, कर दे जान निसार..

***

शन्नो पूजा निर्मला, अजित दिशा मिल साथ.

संगीता मंजू सदा, रहें उठाये माथ.

****

दोहा राखी बाँधिए, हिन्दयुग्म के हाथ.

सब को दोहा सिद्ध हो, विनय 'सलिल' की नाथ..

***

राखी की साखी यही, संबंधों का मूल.

'सलिल' स्नेह-विश्वास है, शंका कर निर्मूल..


***

सावन मन भावन लगे, लाये बरखा मीत.

रक्षा बंधन-कजलियाँ, बाँटें सबको प्रीत..

*******

मन से मन का मेल ही, राखी का त्यौहार.

मिले स्नेह को स्नेह का, नित स्नेहिल उपहार..

*******

निधि ऋतु सुषमा अनन्या, करें अर्चना नित्य.

बढे भाई के नेह नित, वर दो यही अनित्य..

*******

आकांक्षा हर भाई की, मिले बहिन का प्यार.

राखी सजे कलाई पर, खुशियाँ मिलें अपार..

*******

गीता देती ज्ञान यह, कर्म न करना भूल.

स्वार्थरहित संबंध ही, है हर सुख का मूल..

*******

मेघ भाई धरती बहिन, मना रहे त्यौहार.

वर्षा का इसने दिया. है उसको उपहार..

*******

हम शिल्पी साहित्य के, रखें स्नेह-संबंध.

हिंदी-हित का हो नहीं, 'सलिल' भंग अनुबंध..

*******

राखी पर मत कीजिये, स्वार्थ-सिद्धि व्यापार.

बाँध- बँधाकर बसायें, 'सलिल' स्नेह संसार..

******

भैया-बहिना सूर्य-शशि, होकर भिन्न अभिन्न.

'सलिल' रहें दोनों सुखी, कभी न हों वे खिन्न..

*******

रक्षा बंधन के दोहे: आचार्य संजीव 'सलिल'

रक्षा बंधन के दोहे:

चित-पट दो पर एक है, दोनों का अस्तित्व.
भाई-बहिन अद्वैत का, लिए द्वैत में तत्व..
***
दो तन पर मन एक हैं, सुख-दुःख भी हैं एक.
यह फिसले तो वह 'सलिल', सार्थक हो बन टेक..
***
यह सलिला है वह सलिल, नेह नर्मदा धार.
इसकी नौका पार हो, पा उसकी पतवार..
***
यह उसकी रक्षा करे, वह इस पर दे जान.
'सलिल' स्नेह' को स्नेह दे, कर दे जान निसार..
***
शन्नो पूजा निर्मला, अजित दिशा मिल साथ.
संगीता मंजू सदा, रहें उठाये माथ.
****
दोहा राखी बाँधिए, हिन्दयुग्म के हाथ.
सब को दोहा सिद्ध हो, विनय 'सलिल' की नाथ..
***
राखी की साखी यही, संबंधों का मूल.
'सलिल' स्नेह-विश्वास है, शंका कर निर्मूल..
***
सावन मन भावन लगे, लाये बरखा मीत.
रक्षा बंधन-कजलियाँ, बाँटें सबको प्रीत..
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मन से मन का मेल ही, राखी का त्यौहार.
मिले स्नेह को स्नेह का, नित स्नेहिल उपहार..
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निधि ऋतु सुषमा अनन्या, करें अर्चना नित्य.
बढे भाई के नेह नित, वर दो यही अनित्य..
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आकांक्षा हर भाई की, मिले बहिन का प्यार.
राखी सजे कलाई पर, खुशियाँ मिलें अपार..
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गीता देती ज्ञान यह, कर्म न करना भूल.
स्वार्थरहित संबंध ही, है हर सुख का मूल..
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मेघ भाई धरती बहिन, मना रहे त्यौहार.
वर्षा का इसने दिया. है उसको उपहार..
*******
हम शिल्पी साहित्य के, रखें स्नेह-संबंध.
हिंदी-हित का हो नहीं, 'सलिल' भंग अनुबंध..
*******
राखी पर मत कीजिये, स्वार्थ-सिद्धि व्यापार.
बाँध- बँधाकर बसायें, 'सलिल' स्नेह संसार..
******
भैया-बहिना सूर्य-शशि, होकर भिन्न अभिन्न.
'सलिल' रहें दोनों सुखी, कभी न हों वे खिन्न..
*******

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

समाचार - शोध: सहायता करें

प्रश्न उठे उत्तर हैं शेष, पाठक करिए इन्हें अशेष. आत्मीय!
'परहित सरिस धरम नहीं भाई !
किसी का हित करने का ऐसा अवसर मिले की आपकी गाँठ से कौडी भी न जाए तो धर्म करने का यह अवसर कौन चूकना चाहेगा? आपके सामने एक ऐसा ही अवसर है।
आप जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में पत्रकारिता एंव जनसंचार विभाग की द्वितीय वर्ष की छात्रा निहारिका श्रीवास्तव के कुछ प्रश्नों के उत्तर देकर उसके लघु शोध कार्य में सहायक हो सकते हैं। sनाताकोत्तर चतुर्थ सत्र में उसके लघु शोध पत्र का विषय है - 'बेव पत्रकारिता का बिकास एंव संभावनाये' । प्रश्न निम्न है--
प्रश्न १ : ई न्यूज पेपर क्या है?
प्रश्न 2 : पोर्टल क्या है?
प्रश्न 3 : डाॅट इन, डाॅट काम, डाॅट ओ। आर। जी। तथा अन्य सबंधित शब्दों के अर्थ एवं बेव पत्रकारिता में उनकी भूमिका?
प्रश्न 4 : भारत में बेव पत्रकारिता का प्रचलन कैसा है एंव मुख पोर्टल कौन कौन से है?
प्रश्न 5: वेब पत्रकारिता के विभिन्न स्वरूप एंव उनके समक्ष आने वाली चुनौतिया क्या है।
दिव्य नर्मदा के पाठक / दर्शक इन प्रश्नों के उत्तर देकर इस लधु शोध पत्र के लिए संजीवनी बूटी के समान सहायक सिद्ध हों। इन प्रश्नों के अतिरिक्त उक्त शोध पत्र से संबधित अन्य कोई जानकारी रखते है तो आप निहारिका को अपने ज्ञान से अनुगृहित करें।
निहारिका का ee मेल पता mailto:---naina7786@%3Cspan%20title=
डाक का पता : निहारिका श्रीवास्तव, जनसंचार एंव पत्रकारिता अध्ययन केन्द्र, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

चित्रगुप्त भजन : आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे

आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे।
शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे....

माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन।
जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे....

प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई।
कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे...

मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया।
मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

आस-श्वास सी दोऊ मैया, ममतामय आँचल दे छैंया।
सुत का भाग जगा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

नेह नर्मदा संबंधों की, जन्म-जन्म के अनुबंधों की।
नाते 'सलिल' निभा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

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गुरुवार, 26 मार्च 2009

मातृ वंदना - संजीव 'सलिल'

मातृ वंदना 

- संजीव 'सलिल'

ममतामयी माँ नंदिनी-करुणामयी माँ इरावती।
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...

लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी।
सत्पथ दिखाओ माँ, बने सन्तान सब तेरी सुखी॥
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं अभाव हों-
सात्विक रहे आचार, माता सदय रहो निहारती॥

कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें।
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें॥
निष्काम औ' निष्पक्ष रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निश्छल रहें मन-प्राण, वाणी नित तम्हें गुहारती...

चित्रेश प्रभु केकृपा मैया!, आप ही दिलवाइये।
जैसे भी हैं, हैं पुत्र माता!, मत हमें ठुकराइए॥
कंकर से शंकर बन सकें, सत-शिव औ' सुंदर वर सकें-
साधना कर सफल, क्यों मुझ 'सलिल' को बिसारती...

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अलका सक्सेना श्रेष्ठ समाचार प्रस्तोता : बधाई

ज़ी न्यूज़ की अलका सक्सेना सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ एंकर और आजतक की श्वेता सिंह सबसे ग्लैमरस महिला एंकर बनी - मीडिया खबर, मार्च, 2009
हिंदी समाचार चैनलों में काम करने वाली महिला पत्रकारों पर केंद्रित सर्वे का परिणाम :

हिंदी के समाचार चैनलों में काम करने वाली महिलाओं को केंद्र में रखकर मीडिया खबर.कॉम ने अपने प्रिंट पार्टनर मीडिया मंत्र (मीडिया पर केंद्रित हिंदी की मासिक पत्रिका) के साथ मिलकर पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वे करवाया। सर्वश्रेष्ठ महिला एंकर और सबसे ग्लैमरस एंकर के अलावा कुल 12 सवाल सर्वे में पूछे गए। यह सर्वे 15 फरवरी से 6 मार्च के बीच हुआ।

सर्वे के प्रति लोगों ने काफी रूचि दिखाई और कुल 4125 लोगों ने सर्वे में भाग लिया। सर्वे में मीडिया और पत्रकारिता से जुड़े लोगों ने भी भाग लिया और इनकी संख्या 650 के करीब रही। इन्हें व्यक्तिगत स्तर पर मीडिया का ऑनलाइन सर्वे फॉर्म भेजा गया। सर्वे में कुछ सवाल ऐसे थे जो सिर्फ पत्रकारों के लिए था। मसलन महिलाओं के लिए कौन से चैनल का माहौल सबसे अच्छा है।

वोटिंग करने की प्रक्रिया में हमने ऐसी व्यवस्था की थी कि एक बार वोटिंग करने के तत्काल बाद आप उसी कंप्यूटर या आईपी एड्रेस से दुबारा वोट नहीं कर सकते। 12 घंटे के बाद ही वोट कर चुका व्यक्ति दुबारा वोट कर सकता था।

ऑनलाइन हुए सर्वे में सर्वश्रेष्ठ महिला न्यूज़ एंकर के लिए सबसे ज्यादा वोट जी न्यूज़ की कंसल्टिंग एडिटर अल्का सक्सेना को मिला। कुल 25.98% लोगों ने उनके पक्ष में मतदान किया। एनडीटीवी की निधि कुलपति उनसे महज कुछ प्रतिशत वोटों के अंतर से दूसरे स्थान पर पिछड़ गयीं। उन्हें 23.06%वोट मिले। तीसरे स्थान पर एनडीटीवी की नगमा सेहर रही। उन्हें 9.50% वोट मिले। 

वहीं दूसरी तरफ न्यूज़ चैनलों की सबसे ग्लैमरस महिला एंकर के लिए मुख्य प्रतिस्पर्धा एनडीटीवी की अफसां अंजुम और आजतक की श्वेता सिंह के बीच रहा। खास बात यह है कि दोनों ही एंकर को खेल पत्रकरिता में विशेषज्ञता हासिल है। लेकिन कड़े प्रतिस्पर्धा के बाद चंद वोटों के फासले से आजतक की श्वेता सिंह, एनडीटीवी की अफसां अंजुम से आगे निकल गयी। श्वेता सिंह को 22.95% वोट मिले जबकि अफसां अंजुम को 22.07% वोट मिले। गौरतलब है कि इन दोनों को सर्वश्रेष्ठ महिला न्यूज़ एंकर वाले श्रेणी में प्रथम दस की सूचि में भी जगह मिली। तीसरा स्थान एनडीटीवी की अमृता राय को मिला। उनके पक्ष में 8% लोगों ने मतदान किया। चौथे , पांचवें और छठवें स्थान पर नगमा सेहर, सिक्ता देव और अंजना कश्यप रही।

वैसे अलग-अलग चैनलों में काम करने वाली कुल 35 महिला एंकरों के नाम सर्वे के दौरान वोटिंग में हिस्सा लेने वाले लोगों ने सुझाये और अपनी पसंद के विकल्प में उनका नाम देने के साथ-साथ उनके पक्ष में वोट भी किया। हम दोनों श्रेणियों में यहां चोटी की दस महिला एंकरों के नाम दे रहे हैं।

सर्वे का परिणाम आने के बाद मीडिया मंत्र ने सर्वश्रेष्ठ एंकर के लिए सबसे ज्यादा वोट पाने वाली अल्का सक्सेना से बातचीत की तो उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा- ‘‘यह जानकर मुझे बहुत खुशी मिल रही है कि इतने नए और ग्लैमरस एंकरों के बीच अभी भी लोग मुझे याद रखते हैं। मैं उनलोगों को धन्यवाद करना चाहूंगी जिन्होंने मुझे वोट किया है। मैं मूलतः अपने आप को पत्रकार मानती हूँ और जब मैं एंकरिंग भी करती हूँ तो यह बात मेरे जेहन में रहती है और शायद लोग इस बात को नोटिस करते हैं। शायद यह ध्यान में रखकर मेरे पक्ष में लोगों ने वोट किया है और मुझे इस बात की खुशी है।’’

सर्वे में 44.72% लोगों ने न्यूज़ चैनलों में स्त्रियों के चयन के आधर को अपीयरेंस माना। दूसरी तरफ चैनल के ब्रांड इमेज में महिला पत्रकारों के योगदान को 65.85% लोगों ने अपीयरेंस तक ही सीमित माना। जबकि शिफ्ट और वर्किंग आवर को स्त्री पत्रकारों को सबसे बड़ी समस्या माना गया। और इसके पक्ष में 37.40% लोगों ने वोट किया। 46.34% लोगों ने महिला पत्रकारों के लिहाज से एनडीटीवी इंडिया को सबसे बेहतर माना। चैनलों की स्त्रियों से समाज में सबसे ज्यादा किसका प्रसार होता है, सर्वे के इस सवाल का परिणाम अप्रत्याशित रहा और 44.72%लोगों ने यह माना कि चैनलों की स्त्रियों से समाज में महिला जागरूकता और आत्मविश्वास का प्रसार होता है।

सर्वे का पूरा परिणाम इस तरह से रहा :
1. हिंदी के महिला न्यूज़ एंकरों में आप किसे सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ एंकर मानते हैं ?
क्रम
एंकर
चैनल
प्रतिशत

1
अलका सक्सेना
जी न्यूज़
25.98%

2
निधि कुलपति
एनडीटीवी इंडिया
23.06%

3
नगमा सेहर
एनडीटीवी इंडिया
9.50%

4
अफसां अंजुम
एनडीटीवी इंडिया
7.50%

5
ऋचा अनिरुद्ध
आईबीएन-7
7.00%


6
श्वेता सिंह

आजतक
6.00%
7
मीमांसा मलिक

जी न्यूज़
3.75%
8
सोनिया सिंह

आजतक
3.00%
9
शाजिया इल्मी

स्टार न्यूज़
2.25%
10
शीतल राजपूत

जी न्यूज़
2.00%

2. हिन्दी न्यूज चैनल की सबसे ग्लैमरस एंकर आप किसे मानते हैं?

क्रम
एंकर
चैनल
प्रतिशत

1.
श्वेता सिंह

आजतक
22.95 %
2.
अफसां अंजुम

एनडीटीवी इंडिया
22.07%
3.
अमृता राय
एनडीटीवी इंडिया
8.00%

4.
नगमा सेहर
एनडीटीवी इंडिया
7.50%


5.
सिक्ता देव
एनडीटीवी इंडिया
7.00%


6.
अंजना कश्यप

न्यूज़ 24
6.00%
7.
सोनिया सिंह
आजतक
4.00%


8.
राधिका कौशिक

स्टार न्यूज़
3.00%
9.
शीतल राजपूत

जी न्यूज़
2.50%
10.
अदिति सावंत

स्टार न्यूज़
1.98%

3. आमतौर पर न्यूज चैनलों में स्त्रियों के चयन का आधार होता है..
अपीयरेंस
44.72%

खबरों की समझ
6.50%

लिखने और बोलने की क्षमता
25.20%

स्वयं स्त्री होना
18.70%

अन्य
4.88%

कुछ प्रतिक्रियाएं :@सुंदरता के अलावा चयन का कोई और आधार नहीं होता. @चयन का कोई आधार ही नहीं होता. @चयन का आधार खुबसूरत होना और दिमाग से गायब होना @बस महिला होना ही काफी है. @चयन के बहुत सारे आधार होते हैं.
@पुरुष पत्रकारों के लिए चयन की जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वही प्रक्रिया महिला पत्रकार के चयन में भी अपनाई जाती है.
4. किसी भी चैनल में सबसे ज्यादा महिला पत्रकार किस काम पर लगाए जाते हैं-.
एकरिंग औऱ रिपोर्टिंग
84.55%

स्क्रिप्ट राइटिंग
1.63%


एडीटिंग,इन्जस्टिंग और एसाइन्मेंट
8.94%

तकनीकी

0.81%
अन्य

4.07%
5. चैनल की ब्रांड इमेज में महिला पत्रकारों का योगदान किस स्तर पर माना जाता है
अपीयरेंस

65.85%
रिपोर्टिंग

15.45%
रिवन्यू जेनरेटिंग और मार्केटिंग

12.20%
मैनेजमेंट

1.63%
अन्य

4.87%
6. मौजूदा हालत में स्त्री पत्रकारों की समस्या है-
सुरक्षा के स्तर पर

24.39%
शिफ्ट और वर्किंग आवर के स्तर पर

37.40%
एडजस्मेंट के स्तर पर

14.63%
जेंड़र भेदभाव के स्तर पर

19.51%
अन्य

4.07 %
7. स्त्रियों का मीडिया के प्रति बढ़ते रुझान की वजह है-
ग्लैमर और स्टेटस
73.98%

बदलाव की इच्छा
3.25%

चैलेजिंग प्रोफेशन
15.45%

सामाजिक भागीदारी
6.50%

अन्य
0.82%

8. ज्यादातर महिला पत्रकार किस फील्ड की रिपोर्टिंग पसंद करती है..
फिल्म,मनोरंजन और फैशन

89.43%
स्पोर्ट्स

0.81%
क्राइम और सोशल इश्यू

3.25%
बिजनेस और फाइनेंस

2.44%
अन्य

4.07%

9. महिला पत्रकारों के लिहाज से किस चैनल का महौल सबसे बेहतर है-
एनडीटीवी इंडिया
46.34%

आजतक
8.13%

न्यूज 24
9.76%

जी न्यूज
8.94%

सहारा
9.76%

स्टार न्यूज़
1.63%

अन्य
13.64%

10. चैनल की स्त्रियों से समाज में सबसे ज्यादा प्रसार होता है-
ग्लैमर का

37.40%
महिला जागरुकता और आत्मविश्वास का

44.72%
सामाजिक बराबरी का

8.94%
जिम्मेदारी का

6.50%
महिलाओं में टीवी पर आने का

2.44%
11. महिला एंकरों से ऑडिएंस के जुड़ने की वजह होती है-
खबरों की प्रस्तुति का अंदाज और आवाज
30.08%

प्रजेंस ऑफ माइंड और बोल्डनेस
10.57%

ग्लैमरस लुक
43.90%

फैमिलियर एप्रोच
13.01%

ग्लैमरस लुक और खबरों की प्रस्तुति का अंदाज़
0.81%


जेंडर आकर्षण
0.81%

अन्य
0.82%

12. टीवी पत्रकार के तौर पर ज्यादातर स्त्रियां अपने को किस रुप में देखना पसंद करती हैं-
एंकर
87.80%

रिपोर्टर
5.69%

प्रोड्यूसर
2.44%

स्क्रिप्ट राइटर
1.63%

अन्य
2.34 %

प्रतिक्रिया :एंकर रिपोर्टर प्रोड्यूसर स्क्रिप्ट राइटर मुझे लगता है....कि इनके अलावा प्रबंधन में भी शामिल किया जाए .

शनिवार, 21 मार्च 2009

geet:

गीत

चलो हम सूरज उगायें

आचार्य संजीव 'सलिल'

चलो! हम सूरज उगायें...

सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरितिमा मिल हम उगायें....

विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुंदर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...

लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलायें...

आत्म में विश्वात्म देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...

तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुनेंगे।
नाद अनहद गूँजता  जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...

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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

muktika:

मुक्तिका 

तुम

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
सारी रात जगाते हो तुम
नज़र न फिर भी आते हो तुम.

थक कर आँखें बंद करुँ तो-
सपनों में मिल जाते हो तुम.

पहले मुझ से आँख चुराते,
फिर क्यों आँख मिलाते हो तुम?

रूठ मौन हो कभी छिप रहे,
कभी गीत नव गाते हो तुम

नित नटवर नटनागर नटखट 
नचते नाच नचाते हो तुम

'सलिल' बाँह में कभी लजाते,
कभी दूर हो जाते हो तुम.



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मंगलवार, 17 मार्च 2009

चित्रगुप्त वंदना : सलिल

दोहा सलिला:

चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, उससे सृष्टि निहाल।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

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मुक्तक: दिल की बातें

मुक्तक

दिल को दिल ने जब पुकारा, दिल तड़प कर रह गया।
दिल को दिल का था सहारा, दिल न कुछ कह कह गया।
दिल ने दिल पर रखा पत्थर, दिल से आँखे फेर लीं-
दिल ने दिल से दिल लगाया, दिल्लगी दिल सह गया।

दिल लिया दिल बिन दिए ही, दिल दिया बिन दिल लिए।
देखकर यह खेल रोते दिल बिचारे लब सिए।
फिजा जहरीली कलंकित चाँद पर लानत 'सलिल'-
तुम्हें क्या मालूम तुमने तोड़ कितने दिल दिए।

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सोमवार, 16 मार्च 2009

सलिल की कलम से...

मुक्तक
सलिल
*
रंग बिरंगी इस दुनिया के सारे रंग फीके पड़ते।

इठलाते जो फूल आज, वे कल बेबस होकर झड़ते।

झगड़ रहे हैं फ़िर भी क्यों हम?, कोई मुझको बतलाये-

'सलिल' सत्य को जाने बिन ही, क्यों जिद करते, क्यों अड़ते?
*

shri chitragupta bhajan:

श्री भगवान
संजीव
*
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

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रविवार, 15 मार्च 2009

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद : एक नज़र

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद : एक नज़र

१ गठन : २३ जून २००३, जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय कायस्थ कार्यकर्त्ता सम्मलेन में।

२ स्वरुप : यह देश-विदेश में कार्यरत कायस्थ संस्थाओं, न्यासों, समितियों, मंदिरों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का परिसंघ है। इसका संविधान अध्यक्षीय प्रणाली पर आधारित है। हर ५ वर्ष बाद सभी सम्बद्ध सभाओं के वैध प्रतिनिधि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। निर्वाचित अध्यक्ष अन्य पदाधिकारियों तथा कार्य कारिणी का मनोनयन करता है। परिक्षेत्र अध्यक्ष ( चैप्टर चेयरमैन ) तथा युवा महत्वपूर्ण घटक हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष को परामर्श देने के लिए मार्ग दर्शक मंडल होता है। विधायिका (साधारण सभा) तथा kaarya paalika ( राष्ट्रीय कार्यकारिणी ) के माध्यम से गतिविधियों का सञ्चालन होता है।
३ उद्देश्य : उक्त सभी को सामाजिक समरसता, राष्ट्रीयता, सहयोग, सद्भाव तथा समन्वय के लिए एक संयुक्त मंच प्रदान करना। अन्य संथाओं के कार्यक्रमों में सहयोग देना तथा अपनर कार्यक्रमों में सबका सहयोग लेना। शासन। समाज तथा प्रेस को कायस्थों के संख्या बल, बौद्धिक क्षमता, आर्थिक स्थिति, सामाजिक मान्यता तथा सर्वतोमुखी योगदान की अनिभूति करना।

४ : सर्व धर्म समभाव, सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम, विश्विक नीडंआदि आदर्शों को मूर्त करने के लिए स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्टार पर गतिविधियों का सञ्चालन, नियंत्रण तथा आयोजन करना और कराना। विश्व शान्ति, विश्व न्याय, विश्व ज्ञान तथा विव्श्व मानव की परिकल्पना को मूर्त कराना। इस हेतु चित्रगुप्त मंदिरों का निर्माण, जीर्णोद्धार तथा सञ्चालन करना।

५ सदस्यता : संरक्षक ११००/- , पदाधिकारी २५०/- वार्षिक, सम्बद्धता - राष्ट्रीय ५०१/-, प्रांतीय २५१/-, स्थानीय ५१/-, पत्रिका २१/-, धार्मिक संसथान ५/-।

६ मताधिकार : उक्तानुसार क्रमशः राष्ट्रीय १५, प्रांतीय १०, स्थानीय ५ तथा anya १ मत

७ कार्य काल : राष्ट्रीय अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, महामंत्री लगातार २ कार्यकाल से अधिक अपने पद पर नहीं रह सकेंगे।

८ साधारण सभा : संचालक मंडल के सदस्य, सम्बद्ध सभाओं के प्रतिनिधि, मार्ग दर्शक मंडल, कार्य कारिणी सदस्य
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समाचार: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर गठित मुख़र्जी कमीशन की रिपोर्ट सामने लाओ

समाचार: नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर गठित मुख़र्जी कमीशन की रिपोर्ट सामने लाओ

'नेताजी सुभाष चंद्र बोस औया आजाद हिंद सेना के अद्वितीय संघर्ष और बलिदान के कारण ही भारत को स्वतंत्रता मिली। पश्चिमी देशों द्वारा नेताजी को द्वितीय विश्व युद्ध का अपराधी घोषित कर देने और कांग्रेस दल द्वारा सत्ता के लोभ में इस नीति का समर्थन करने के कारण नेताजी को विवश होकर लापता रहना पड़ा तथा कांग्रेस सत्ता सुख भोगती रही। स्व जवाहर लाल नेहरू ने लोर्ड माउंटबेटन के दबाब में नेताजी को युद्ध अपराधी मानते हुए मिलते ही इंग्लैंड को सौंपने की गुप्त संधि पर हस्ताक्षर कर दिए तथा इसे जनता से छिपाया गया।

आजादी के बाद से ही नेताजी के लापता होने का सच सामने लाने की मांग होती रही है। इस सम्बन्ध में गठित पहले दो आयोगों पर सरकारी नीति के अनुरूप रपट तैयार करने के आरोपों के कारण मुखर्जी आयोग का गठन किया गया था। मुखर्जी आयोग ने पाया की जिस विमान की दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु होने का प्रचार किया गया था वह वास्तव में कभी उडा ही नहीं था। मुखर्जी आयोग की पूरी रपट आगामी आम चुनाव के पहले जनता के सामने लाई जाने की मांग करते हुए सुभाष चन्द्र बोस राष्ट्रीय विचार मंच के अत्याग्रह समिति संयोजक श्री सुरेन्द्र नाथ चित्रांशी, कानपूर तथा राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री संजीव 'सलिल' ने कहा है के अहिंसा कभी राष्ट्र-धर्म या राज-धर्म नहीं हो सकता। कर्न्ति में रक्तपात अनिवार्य होता है। अहिंसा से आज़ादी लेने का भ्रम फैला कर गांधीवादियों ने छल किया तथा सत्याग्रहों के नाम पर कानून तोड़ने की जिस प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया वही आज की समस्याओं का कारण है।

राष्ट्र पर आक्रमण, संवैधानिक सत्ता के विरुद्ध विप्लव, विदेशी शासन से संघर्ष आदि परिस्थतियों में हिंसा न केवल उचित अपितु अपरिहार्य भी होती है। नेताजी ने यही किया। राम भवन अयोध्या से प्राप्त ग्म्नामी बाबा के २८ बक्सों में मिले समान को जिला कोषालय फैजाबाद से निकालकरजनता के सामने रखा जाना आवश्यक है। तभी यह सुनिश्चित हो सकेगा की वे नेताजी थे या नहीं?

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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

चित्रगुप्त ओंकार:

दोहा सलिला:
श्री चित्रगुप्त भजन
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ॐ परात्पर ब्रम्ह प्रभु, चित्रगुप्त ओंकार।
गूंजी अनहद नाद वे, निराकार-भवसार।

प्रभु अविनाशी अनश्वर, निज इच्छा-अनुसार।
रचें शून्य से सृष्टि हो, निराकार साकार।



एक वही कोई नहीं, दूजा या समकक्ष।
होकर भी वे हैं नहीं, परिधि केंद्र वृत्त अक्ष।


प्रभु ही भाव-अभाव हैं, प्रभु स्वभाव-निर्भाव।
हैं अनादि, वे सादि भी,सांत-अनंत निभाव।


प्रणव मन्त्र ओंकार ही, सकल सृष्टि का मूल।
भूत-आज- भावी त्रयी, महाकाल के शूल।


ॐ निनादित नाद नित, वर्तुल वाले अनंत।
अन्तरिक्ष में व्याप्त विधि,गुंजित दिशा दिगंत।


ॐ निरंजन नाद से, उपजा दिव्य प्रकाश।
नव आभा से चमत्कृत,ध्वनि-प्रकाश के पाश।


परिभ्रमित ऊर्जा प्रबल, परिक्रमित हो नित्य।
सघन-संगठित हो बनी, कण अनगिनत अनित्य।


कण-कण में परिव्याप्त थी, ऊर्जा शक्ति अपार।
मिलन-विलय घर्षण जनित, कण ज्योतित अंगार।


आकर्षण हरि में बहुत, विधि भी सके न मेट।
प्रबल विकर्षण हर कहीं सकता कौन समेट?


विधि-हरि एक-अनेक हों, हर अनेक से एक।
हैं असंख्य ब्रम्हांड में ,लख दिग्भ्रमित विवेक.

कण में कण के मिलन से, बने पिंड-आकाश।
कण ही कण से अलग हो, रचे नाश के पाश।


कण से कण टकरा करे, नव ऊर्जा संचार।
कण-कण में परब्रम्ह का, पल-पल कर दीदार।


कण-कण के कारण बने, चिन्मय घाट-आकाश।
कण-कण ही तारण-तरण, मृण्मय भव-भवपाश।

अजर अमर अक्षर प्रखर, बिखर-निखर कण व्याप्त।
पिंड परवलय को चुनें, केंद्र भास्कर आप्त।

शक्ति परा-अपरा अजित, अमित करे विस्तार।
गृह-उपगृह परिपथ सहित, रचें सौर-संसार।

सिन्धु समाहित बिंदु में, बिंदु-सिंधु में लीन।
गिरी-गव्हर सागर अगम, प्रगटे हुए विलीन।

ऊर्जा और समीर के, कण मिल उगलें आग।
ज्वालाओं की लपट या, अगणित ऊर्जा नग?

तापमान चढ़-उतर कर, खेल रहा क्या खेल?
क्रिया-प्रतिक्रिया नित नयी, विस्मित था नभ झेल।

सृजन-नाश के ताप से, कैसे होगा त्राण?
आकुल-व्याकुल थे सकल, सम्प्राणित पाषाण।

अनहद ध्वनि के नाद से, प्रगट नर्मदा दिव्य।
अमरकंटकी निःसृत हो, प्रवहीं भू पर नव्य।

बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

shri chitragupata ji arati



श्री चित्रगुप्त आरती

श्री चित्रगुप्त मंदिर खजुराहो मध्य प्रदेश






















शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

rakam padadhikari:

रा का म :पदाधिकारी - सर्व चित्रांश

मुख्य समन्वयक : त्रिलोकी प्रसाद वर्मा, राम सखी निवास, पड़ाव पोखर लेन मुजफ्फरपुर
दूरभाष: ०६२१-२२४३९९९, चलभाष: ०९४३१२३८६२३

राष्ट्रीय अध्यक्ष : अरविन्द कुमार सम्भव, २/१३९ कृष्णशीला, एस. ऍफ़. अग्रवाल फार्म जयपुर ३०२०२०
दूरभाष: ०१४१-२३९६०४६, चलभाष: ०९४१४७९६०३८

वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', 2०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपिअर टाउन, जबलपुर
४८२००१ दूरभाष: ०७६१-२४१११३१, चलभाष: ०९४२५१ ८३२४४,
ई मेल: सलिल
.संजीव@जीमेल.com" target=_blank>सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम , ब्लॉग: संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम , संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन

राष्ट्रीय महामंत्री : कुमार अनुपम, संपादक चित्रगुप्त परिवार संदेश, चित्रगुप्त समाज बिहार, खगौल मार्ग, अनीसाबाद पटना ८००००२, दूरभाष: ०६१२- २३५१९६४, चलभाष: ०९४३१४२६९९१

राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री : दिनेश कुमार माथुर, जयपुर,
दूरभाष: ०१४१_२७८२३८२, चलभाष: ०९८२९७ ५२१९२

राष्ट्रीय संगठन मंत्री: अरविन्द कुमार सिन्हा, पटना
दूरभाष: ०६१२-२६८३३३३, चलभाष: ०९४३१०७७५५५

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष :
उत्तर प्रदेश -1 : राकेश निगम, झांसी
दूरभाष: ०५१७-२४४२३१३, चलभाष: ०९४१५१ ४३४७६
उत्तर प्रदेश - 2 : चारू चन्द्र खरे, नव नक्षत्र प्रेस, कटरा, बांदा २१०००१,
दूरभाष: ०५१९२-२२४३६८, चलभाष: ९४१५१४४०४७ / ९८३८२०४०४७

मध्य प्रदेश-१: पी ऐन श्रीवास्तव, DX १०, योजना क्र ७१, सेक्टर सी, गुमाश्ता नगर, इंदौर ४५२००९, दूरभाष: ०७३१-२४८३८५४, चलभाष: ०९४२५९०००२५

छत्तीसगढ़ -1 : राजेश सक्सेना, कल्याण कोचिंग कक्षाएं, स्टेशन मार्ग, रायपुर
दूरभाष: ०७७१-२५२५५८१, चलभाष: ९८२६१ ८३२४७

छत्तीसगढ़ -2 :अरुण श्रीवास्तव 'विनीत', संपादक चित्रांश चर्चा, शान्ति कुञ्ज, २१/५८१ सिंधिया नगर, दुर्ग ४९१००२, दूरभाष: ०७८८-२२९०३३१, चलभाष: ९४२५२ ०१२५१, ई मेल: चित्रांशचर्चा चित्रन्श्चर्चा@वेबदुनिया.com" target=_blank>@वेबदुनिया.कॉम

बिहार: हरिहर प्रसाद सिन्हा,
दूरभाष: ०६१२- २६४३१५५, चलभाष:: ०९३३४२७४६९७

rajasthan : प्रो वाय ऐन माथुर, कोटा
दूरभाष: ०७४४-२५०१४७५, चलभाष: ९४६१६ ६०३३८

धर्म-आध्यात्म प्रकोष्ठ : सुरेन्द्र नाथ चित्रांशी, रतन नगर, कानपूर
दूरभाष: , चलभाष: ०९४५२५२६१८१
पत्रिका प्रकोष्ठ: कमल कान्त वर्मा , संपादक चित्रांश संदेश, रति विला, ऐफ ३१०६ राजाजीपुरम , लखनऊ २२६०१७, दूरभाष: ०५२२-२४१८१४७, चलभाष: ०९४५२६७४०१२

सामाजिक प्रकोष्ठ : रामानंद श्रीवास्तव, पटना
दूरभाष: , चलभाष: ०९३३४१ ०००८९

शिक्षा-संस्कृति प्रकोष्ठ : रनजीत सिन्हा, कटिहार दूरभाष: , चलभाष: ०९४३००

राष्ट्रीय कोशाध्यक्ष : भगवत स्वरुप कुलश्रेष्ठ , जयपुर
दूरभाष: ०१४१-२५९३१०७, चलभाष: ०९४१४७ १७९०३

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

shri chitrgupt parivar




chitrgupt ji rigved men


चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु ।
पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ RIG VEDA 8/21/18

doha dev vandana

दोहा:
संजीव
*
निराकार पर ब्रम्ह हे!, चित्रगुप्त भगवान
हर काया में समाया, प्रभु का अंश समान
.
चित्रगुप्त परब्रम्ह हे!, रहिए सदय सदैव
ध्यान तुम्हारा कर सकूँ, तहकर सभी कुटैव
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माता नन्दिनी-दक्षिणा, हमको दें आशीष
निभा सकें कर्तव्य निज, हम हो सकें मनीष
.
काया हैं प्रभु आप ही, माया हैं प्रभु आप
मन मंदिर होगा करें, नित्य तुम्हारा जाप
.
कंकर कंकर में  छिपा, गुप्त चित्र लें देख
ऐसी कब होगी 'सलिल', कर्मों की शुभ रेख
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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

श्री भगवान - आचार्य संजीव 'सलिल'

भक्ति गीत
श्री भगवान
आचार्य संजीव 'सलिल'

मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...


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